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अनामिका ढोता जो वह, फिर देखा, उस पुल के ऊपर बहुसंख्यक बैठे हैं वानर । एक ओर पथ के, कृष्णकाय कालशेष नर मृत्यु-प्राय बैठा सशरीर दैन्य दुर्बल, भिक्षा को उठी दृष्टि निश्चल; अति क्षीण कण्ठ, है तीन श्वास, जीता ज्यों जीवन से उदास । कौन सा शाप? भोगता कठिन, कौन सा पाप ? यह प्रश्न सदा ही है पथ पर, पर सदा मौन इसका उत्तर जो बड़ी दया का उदाहरण, वह पैसा एक, उपायकरण ! मैंने झुक नीचे को देखा, तो झलकी श्राशा की रेखा :- विप्रवर स्नान कर चढ़ा सलिल शिव पर दूर्वादल, तण्डुल, तिल,