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ara - निकला.पहला अरविन्द आज, देखता अनिन्द्य रहस्य-साज; सौरभ-वसेना समीर बहती; कानों में प्राणों की कहती; गोमती क्षीण-कटि नटी नवल, नृत्वपर मधुर-आवेश-चपल । मैं प्रातः पर्यटनार्थ चला लौटा, आ पुल पर खड़ा हुआ, सोचा-"विश्व का नियम निश्चल, जो जैसा, उसको वैसा फल देती यह प्रकृति स्वयं सदया, सोचने को न कुछ रहा नया; सौन्दर्य, गीत, बहु वर्ण, गन्ध, भावों के छन्द-बन्ध, और भी उच्चतर जो विलास, प्राकृतिक दान वे, सप्रयास या अनायास आते हैं सब, सब में है श्रेष्ठ, धन्य मानव ।" 7 भाषा,

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