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सम्राट एडवर्ड अष्टम के प्रति निश्चय, हो श्वेत, कृष्णए अथवा, वह नहीं क्लिन्न; भेद कर पङ्क निकलता कमल जो मानव का वह निष्कलङ्क हो कोई सर" था सुना, रहे सम्राट! अमर- मानव के वर! वैभव विशाल, साम्राज्य सप्त-सागर-तरङ्ग-दल-दत्त-माल, है सूर्य क्षत्र मस्तक पर सदा विराजित ले कर-श्रातपत्र, विच्छुरित छटा- जल, स्थल, नभ में विजयिनी वाहिनी-विपुल घटा, क्षण क्षण भर पर, बदलती इन्द्रधनु इस दिशि से , - - .