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सम्राट अष्टम एडवर्ड के प्रति वीक्षण अराल :- वज रहे जहाँ जीवन का स्वर भर छन्द ताल मौन मे मन्द्र, ! ये दीपक जिसके सूर्य-चन्द्र, बंध रहा जहाँ दिग्देशकाल, सम्राट! उसी स्पर्श से खिली प्रणय के प्रियङ्ग, की डाल-डाल विशति शताब्दि, धन के, मान के बॉध को जर्जर कर महाब्धि ज्ञान का, बहा जो भर गर्जन- साहित्यिक स्वर- "जो करे गन्ध-मधु का वर्जन वह नहीं भ्रमर मानव मानव से नहीं भिन्न, - । १८ । m