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मित्र के प्रति यत्र-तत्र पड़े हुए थे, उन्हीं से अपार प्यार बंधा हुआ था असार, मिला दुःख निराधार' तुम्हे इसलिये F बही तीड़ बन्धन छन्दों का निरुपाय, वहीं किया की फिर-फिर हवा 'हाय-हाय। कमरे में, मध्य याम, करते तब तुम विराम, रचते अथवा ललाम गतालोक लोक, वह भ्रम भरुपथ पर की यहाँ-वहाँ व्यस्त फिरी, 1