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मित्र के प्रति रहे बन्द कर्ण - कुहर, मन पर प्राचीन मुहर, हृदय पर शिला ५ पवित्र, सोचो तो क्या थी वह भावना बँधा जहाँ भेद भूल मित्र से अमित्र तुम्ही एक रहे मोड़ मूर्ख, प्रिय, प्रिय मित्र छोड़ा कहो, कहो, कहाँ होड़ जहाँ जोड़, प्यार? इसी रूप में रह स्थिर, इसी भाव मे घिर - घिर, करोगे अपार तिमिर- सागर को पार? . मही बन्धु, वायु प्रबल