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अनामिका
 

नूतन पल्लव-दल, कलि,
मँडलाते व्याकुल अलि,
तनु-तन पर जाते बलि
बार-बार हार;
वही जो सुवास मन्द
मधुर-भार-भरण-छन्द,
मिली नहीं तुम्हें, बन्द
रहे, बन्धु, द्वार?

इसी समय झुकी आम्र—
शाखा फल-भार
मिली नहीं क्या जब यह
देखा संसार?
उसके भीतर जो स्तव,
सुना नहीं कोई रव?
हाय दैव, दव-ही-दव
बन्धु को मिला!
कुहरित भी पञ्चम स्वर,

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