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मित्र के प्रति

कहते हो, "नीरस यह
बन्द करो गान—
कहाँ छन्द, कहाँ भाव,
कहाँ यहाँ प्राण?
"था सर प्राचीन सरस,
सारस-हंसों से हँस;
वारिज-वारिद में बस
रहा विवश प्यार;
जल-तरङ्ग ध्वनि; कलकल
बजा तट-मृदङ्ग सदल;
पैंगें भर पवन कुशल
गाती मल्लार।"

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