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और और छबि (गीत) और और छबि रे यह, नूतन भी कवि, रे यह और और छवि ! समझ तो सही जब भी यह नहीं गगन वह मही नहीं, बादल वह नहीं जहाँ छिपा हुश्रा पवि, रे यह और और छवि। यह है यहाँ, जैसा देखा पहले होता अथवा सुना; किन्तु नहीं पहले की, यहाँ कहीं हवि, रे यह और और छवि! १७.८.15. --

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