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नासमझी समझ नहीं सके तुम, हारे हुए झुके तभी नयन तुम्हारे, प्रिय । भरा उल्लास था हृदय में मेरे जब,- कॉपा था वक्ष, तब देखी थी तुमने मेरे मल्लिका के हार की कम्पन, सौन्दर्य को ---

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