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अनामिका उस प्रणय के प्रात की है आज तक याद मुझको जो किरण बाल-यौवन पर पड़ी थी; नयन वे खींचते थे चित्र अपने सौख्य के। श्रान्ति और प्रतीति की चल रही थी तूलिका विश्व पर विश्वास छाया था नया । कल्प-तरु के, नये कोंपल थे उगे। हिल चुका हूँ मैं हवा मे; हानि क्या यदि महू, बहता फिरूं मैं अन्तहीन प्रवाह मे तब तक न जब तक दूर हो निज ज्ञान- नारायण मिलें हॅस अन्त में। - २५.६.२१. - १८४