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सेवा-प्रारम्भ - कितना यह आकर्षण, स्वामीजी के उठे चरण। लड़के आगे हुए, स्वामी पीछे चले। खुश हो नायक ने आवाज़ दी,- "बुढ़िया री, आये हैं बाबा जी।" बुढ़िया मर रही थी गन्दे में फर्श पर पड़ी। आँखों में ही कहा जैसा कुछ उस पर बीता था । स्वामीजी पैठे सेवा करने लगे, साफ की वह जगह, दवा और पथ फिर देने लगे मिलकर अफसरों से भीख माँग बड़े-बड़े घरों से। लिखा मिशन को भी दृश्य और भाव दिखा जो भी। 1 १८१