यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनामिका रहता हर एक यहाँ न्यारा, मदद नहीं करती सरकार, क्या कहूँ, ईश्वर ने ही दी है मार तो कौन खड़ा हो ?" इसी समय आये वे लड़के, स्वामी जी के पैरों भा पड़े । पेट दिखा, मुंह को ले हाथ, करुणा की चितवन से, साथ पोले,-"खाने को दो, राजों के महाराज तुम हो।" 3 - चार आने पैसे स्वामीजी के तब तक थे बचे। चूड़ा दिकवा दिया, खुश होकर लड़कों ने खाया, पानी पिया हॅसा एक लड़का, फिर बोला- "यहाँ एक बुढ़िया भी है, बाबा, पड़ी झोपड़ी में मरती है, तुम देख लो उसे भी, चलो।"

१८० :