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सेवा-प्रारम्भ मिले रास्ते में लड़के भूखों मरते। बोली वह देख के,-"एक महाराज - आये हैं आज, > पीले-पीले कपड़े पहने, होंगे उस घड़े की दुकान पर खड़े, इतना अच्छा घड़ा मुझे ले दिया ! जाओ, पकड़ो उन्हें, जाओ, ले देंगे खाने को, खाओ।" दौड़े लड़के, तब तक स्वामीजी थे बाते करते, कहता दूकानदार उनसे, "हे महाराज, ईश्वर की गाज यहाँ है गिरी, है विपत बड़ी, पड़ा है अकाल, लोग पेट भरते हैं खा-खाकर पेड़ों की छाल । कोई देता नहीं सहारा, 9

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