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अनामिका - रोई फिर वह विभूति कोई। स्वामीजी ने देखीं ऑखें- गीली वे पॉखें, करुण स्वर सुना, उमड़ी स्वामीजी में करुणा। बोले-"तुम चलो घडे की दूकान जहाँ हो, नया एक ले दें" खिली पालिका की आँखें। आगे-आगे चली बड़ी राह होती बाजार की गली, आ कुम्हार के यहाँ खड़ी हो गई घड़े दिखा। एक देखकर पुख्ता सब में विशेखकर, स्वामीजी ने उसे दिला दिया, खुश होकर हुई वह विदा।

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