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सेवा-प्रारम्भ > कठिन हुआ यह जो था बहुत सहल । सोचते व देखते हुए स्वामीजी चले जा रहे थे। इसी समय एक मुसलमानरबालिका भरे हुए पानी मृदु आती थी पथ पर, अम्बुपालिका; घड़ा गिरा, फूटा, देख बालिका का दिल टूटा, होश उड़ गये, कॉपी वह सोच के, रोई चिल्लाकर, फिर ढाढ़ मार-मार कर जैसे मॉ-बाप मरे हो घर । सुनकर स्वामी जी का हृदय हिला, पूछा-"कह, बेटी, कह, क्या हुआ ?" फफक-फफक कर कहा बालिका ने,-"मेरे घर एक यही बचा था घड़ा, मारेगी माँ सुनकर फूटा।" 9

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