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अनामिका दिया एक रुपया, फिर फिरकर चले गये आफिस को सत्वर । स्वामी जी घाट पर गये, "कल जहाज छूटेगा" सुनकर फिर रुक नहीं सके, जहाँ तक करें पैदल पार- गङ्गा के तीर से चले। चढ़े दूसरे दिन स्टीमर पर लम्बा रास्ता पैदल ते कर। आया स्टीमर, उतरे प्रान्त पर, चले, देखा, हैं दृश्य और ही बदले,- दुबले-दुबले जितने लोग, लगा देश भर को ज्यों रोग, दौड़ते हुए दिन में स्यार वस्ती में बैठे भी गीध महाकार, श्रावी बदबू रह-रह, हवा बह रही व्याकुल कह-कहा कहीं नहीं पहले की चहल-पहल, - १७६.