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सेवा-प्रारम्भ । -- जितने ये यहाँ नवयुवक- ज्योति के तिलक- खड़े सहोत्साह, एक-एक लिये हुए प्रलयानल-दाह । श्री 'विवेक', 'ब्रह्म', 'प्रेम', 'सारदा',* ज्ञान-योग-भक्ति-कर्म-धर्म-नर्मदा,- वहीं विविध आध्यात्मिक धाराएँ तोड़ गहन प्रस्तर की काराएँ, क्षिति को कर जाने को पार, पाने को अखिल विश्व का समस्त सार । गृही भी मिले, आध्यात्मिक जीवन के रूप यों खिले । अन्य ओर भीषण रव-यान्त्रिक मङ्कार- विद्या का दम्भ, यहाँ महामौनभरा स्तब्ध निराकार- - नैसर्गिक रङ्ग। 3 ॐ स्वामी विवेकानन्द, स्वामी ब्रह्मानन्द, स्वामी प्रेमानन्द, स्वामी सारदानन्द। १७३