यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

> प्राप्ति (गीत) तुम्हे खोजता था मैं, पा नहीं सका, हमा बन बहीं तुम, जब मैं थका, रुका। मुझे भर लिया तुमने गोद में, कितने चुम्बन दिये, मेरे मानव-मनोविनोद मे नैसर्गिकता लिये। सूखे श्रम-सीकर वे छबि के निर्भर झरे नयनों से, शक्त शिराएँ हुई रक्त-वाह ले, मिलीं-तुम मिलीं, अन्तर कह उठा जब थका, रुका। ' १.२.३८ ---

१४७: