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- वे किसान की नई बहू की आँखें नहीं जानतीं जो अपने को खिली हुई- विश्व-विभव से मिली हुई,- नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को,- नहीं कर सकी सत्य कभी सपने को, वे किसान की नई बहू की ऑखें ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पॉखें; वे केवल निर्जन के दिशाकाश की, प्रियतम के प्राणों के पास-हास की, भीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से-- बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से। १.३.३८.

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