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अपराजिता (गीत) हारी नहीं, देख, ऑखें- परी-नागरी की: नभ कर गई पार पाखें- परी-नागरी की। तिल नीलिमा को रहे स्नेह से भर जगकर नई ज्योति उतरी धरा पर, रंग से भरी हैं, हरी हो उठी हर तरु की तरुण-तान शाखें: परी-नागरी की- हारी नहीं, देख, आँखें। - २.२.३८. १४३ :