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अनामिका हुए कृती कवितावत राजकविसमूह, किन्तु जहाँ पथ-बीहड़ कण्टकनगढ़-व्यूह, कवि कुरूप, चुला रहा वन्यहार थाम, कहो, वहाँ भी जाने को होते प्राण ? कितने वे भाव रसस्राव पुराने-नये संस्कृति की सीमा के अपर पार जो गये, गढ़ा इन्हीं से यह तन, दिया इन्हीं से जीवन, देखे हैं स्फुरित नयन इन्हीं से, कवियों ने परम कान्ति दी जग को चरम शान्ति, की अपनी दूर भ्रान्ति इन्हीं से । होगा इन भावों से हुआ तुम्हारा जीवन, कमी नहीं रही कहीं कोई कहते सब जन, किन्तु वहीं जिसके आँसू निकले-हृदय हिला, कुछ न बना, कहो, कहो, उससे क्या भाव मिला ? - - १७.२.३७. ---

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