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कविता के प्रति Hom- मुक्ता के हार हृदय, कर्ण कीर्ण हीरक-द्वय, हाथ हस्ति-दन्त-वलय मणिमय, चरण स्वर्ण-नूपुर कल, जपालक्त श्रीपदतल, आसन शत-श्वेतोत्सल सञ्चय । 'धन्य धन्य कहते हैं जग-जन मन हार, वहाँ एक दीन-हृदय ने दुर्वह भार- 'मेरे कुछ भी नहीं-कह जो अर्पित किया, कहो, विश्ववन्दिते, उसने भी कुछ दिया ? कितने वन-उपवन -उद्यान कुसुम कलि-सजे निस्पमिते, सहज-भार-चरण-चार से लजे; गई चन्द्र-सूर्य-लोक, ग्रह-ग्रह-प्रति गति अरोक, नयनों के नवालोक से खिले चित्रित वहु धवल धाम अलका के-से विराम सिहरे ज्यों चरण वाम जब मिले 3 ।

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