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कविता के प्रति - - ऐ, कहो, मौन मत रहो! सेवक इतने कवि हैं- इतना उपचार लिये हुए हैं दैनिक सेवा का भार; धूप, दीप, चन्दन, जल, गन्ध-सुमन, दूर्वादल, राग-भोग, पाठ-विमल मन्त्र, पटु-करतल-गत मृदङ्ग, चपल नृत्य, विविध भङ्ग, वीणा-वादित सुरज तन्त्र । गूंज रहा मन्दर-मन्दिर का दृढ़ द्वार, वहाँ सर्व-विषय-हीन दीन नमस्कार दिया भू-पतित हो जिसने क्या वह भी कवि ? सत्य कहो, सत्य कहो, बहु जीवन की छवि ! पहनाये ज्योतिर्मय, जलधि-जलद-भास अथवा हिल्लोल-हरित-प्रकृति-परित वास, 2

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