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" मुक्ति (गीत) तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा पत्थर की, निकलो फिर, गङ्गा-जल-धारा! गृह-गृह की पार्वती! पुनः सत्य-सुन्दर-शिव को सँवारती उर-उर की बनो आरती - भ्रान्तों की निश्चल ध्रुव-तारा - तोड़ो, तोड़ो, तोड़ो कारा! ६.१.३८.