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अनामिका दिये थे जो स्नेह-चुम्बन, आज प्याले गरल के धन; कह रही हो हँस-"पियो, प्रिय, पियो, प्रिय, निरुपाय! मुक्ति हूँ मैं, मृत्यु में आई हुई, न डरो -