यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मरण-दृश्य (गीत) '। कहा जो न, कहो !॥ नित्य-नूतन, प्राण, अपने गान रच-रच दो! विश्व सीमाहीन; बॉधती आतीं मुझे कर कर व्यथा से दीन ! कह रही हो-"दुःख की विधि- यह तुम्हें ला दी नई निधि, विहग के वे पक्ष बदले, किया जल को मीन; मुक्त अम्बर गया, अब हो जलधि-जीवन को!" सकल साभिप्राय; समझ पाया था नहीं मैं, थी तभी यह हाय ! -- १३५ :