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नाचे उस पर श्यामा शीघ्र मर्म का कर उच्छेद, इस शरीर का प्रेम-भाव, यह सुख-सपना, माया, कर भेद ! तुझे मुण्डमाला पहनाते, फिर भय खाते तकते लोग, 'द्यामयी' कह कह चिल्लाते, मॉ, दुनिया का देखा ढोंग! प्राण कॉपते अट्टहास सुन दिगम्बरा का लख उल्लास, अरे भयातुर असुर विजयिनी कह रह जाता, खाता त्रास ! मुँह से कहता है, देखेगा, पर माँ, जब आता है काल, कहाँ भाग जाता भय खाकर तेरा देख वदन विकराल ! माँ, तू मृत्यु घूमती रहती, उत्कट व्याधि, रोग बलवान्, भर विष-घड़े, पिलाती है तू चूंट जहर के लेती प्राण । १११: