यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अनामिका सुख में है दुख, गरल अमृत में, देखो, बता रहा संसार। सुख-दुख का यह निरा हलाहल भरा कण्ठ तक सदा अधीर, रोते मानव, पर आशा का नहीं छोड़ते चञ्चल चीर ! रुद्र रूप से सब डरते हैं, देख देख भरते हैं आह, मृत्युरूपिणी मुक्तकुन्तला मॉ की नहीं किसी को चाह ! उष्णधार उद्गार रुधिर का करती है जो वारम्वार, भीम भुजा की, बीन छीनती, वह जंगी नंगी तलवार । मृत्यु-स्वरूपे माँ, है तू ही सत्य-स्वरूपा, सत्याधार, काली, सुख-वनमाली तेरी माया छाया का संसार ! अये-कालिके, माँ करालिके, , -