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नाचे उस पर श्यामा १ धरा-अधर धारण करते हैं,- रंग के रागों के आकार देख देख भावुक-जन-मन में जगते कितने भाव उदार ! गरज रहे हैं मेघ, अशनिका गूंजा घोर निनाद-प्रमाद, स्वर्गधराव्यापी सङ्गर का छाया विकट कटक-उन्माद अंधकार उद्गीरेण करता अधकार धन घोर अपार महाप्रलय की वायु सुनाती श्वासों में अगणित हुङ्कार इस पर चमक रही है रक्तिम वियुज्ज्वाला वारम्वार फेनिल लहरें गरज चाहती करना गिरि-शिखरों को पार, भीम-घोष गम्भीर, अतल धस टलमल करती धरा अधीर,