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नाचे उस पर श्यामा . फूले फूल सुरभि-व्याकुल अलि गूंज रहे हैं चारों ओर जगतीतल में सकल देवता भरते शशिमृदु हँसी-हिलोर । गन्ध-मन्द-गति मलय पवन है खोल रही स्मृतियों के द्वार, ललित-तरङ्ग नदी-नद सरसी, चल-शतदल पर भ्रमर-विहार । दूर गुहा में निरिणी की तान-तरङ्गों का गुजार, स्वरमय किसलय-निलय विहङ्गो के बजते सुहाग के तार। तरुण-चितेरा अरुण बढ़ा कर स्वर्ण-तूलिका-कर सुकुमार पट-पृथिवी पर रखता है जब, कितने वर्णों का आभार