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गाता हूँ गीत मैं तुम्हें. ही सुनाने को . - पार कर जाता है तर्क की सीमा को, नहीं रह जाता कुछ-सूर्य-चन्द्र-तारा-ग्रह- महा निर्वाण वह, नहीं रहते जब कर्म, करण या कारण कुछ, घोर अन्धकार होता अन्धकार-हृदय में, मैं ही तब विद्यमान। "प्रलय के समय में जब ज्ञान-ज्ञेय ज्ञाता-लय होता है अगणन-ब्रह्माण्ड-पास करके, यह ध्वस्त होता संसार, पार कर जाता है तर्क की सीमा को, नहीं रह जाता कुछ--सूर्य-चन्द्र-तारा-गृह- घोर अंधकार होता अंधकार-हृदय में, दूर होते तीनों गुण, अथवा वे मिल करके शॉत भाव धरते जब एकाकार होते सूक्ष्म शुद्ध-परमाणु काय, मै ही तब विद्यमान । "विकसित फिर होता मैं, मेरी ही शक्ति धरती पहले विकार-रूप, 6 1