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अनामिका किन्तु अति स्थूल भाव मानता तथापि मैं- तत्ववेत्ता का प्रसङ्ग यह है नहीं । चन्द्र-सूर्य-ग्रह-तारा. कोटि-मण्डली-निवास, धूमकेतू , विद्युतप्रकाश आदि जो कुछ यह अन्तहीन महाकाश देखता है मेरा मन, काम, क्रोध लोभ मोह- उठती जहॉ से है तरङ्गों की लीला लोल, विद्या, अविद्या का स्थान, जन्म-जरा जीवन-मरण सुख-दुःख द्वन्द्व केन्द्र जिसका अहम् है, दोनों भुज-वहिरन्तर, आसमुद्र-चन्द्रमा, आतारक-सूर्याकाश, मन बुद्धि-चित्त-अहङ्कार, देव और यक्ष, मानव-दानव-गण, पशु-पक्षी-कृमि-कीट अणुक-द्यणुक जड़-जीव आदि जितने हैं, देखा, एक समक्षेत्र में हैं सब विद्यमान । - -