यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गाता हूँ गीत मैं तुम्हें ही सुनाने को ॥ गाता हूँ गीत मैं तुम्हें ही सुनाने को;॥ भले और बुरे की, लोकनिन्दा यश-कथा की नहीं परवाहे मुझे ; दास तुम दोनों का सशक्तिक चरणों में प्रणाम है तुम्हारे देव ! पीछे खड़े रहते हो, इसीलिये हास्य-मुख देखता हूँ बार बार मुड़ मुड़ कर। बार बार गाता मैं भय नहीं खाता कभी, जन्म और मृत्यु मेरे पैरों पर लोटते हैं। दया के सागर हो तुम, दास जन्म जन्म का तुम्हारा मैं हूँ प्रभो ! क्या गति तुम्हारी, नहीं जानता,॥ अपनी गति, वह भी नहीं,