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वन-वेला - - यह अपल स्नेह,- विश्व के प्रणयि-प्रणयिनियों कर हार-उर गेह ?- गति सहज मन्द यह कहाँ-कहाँ वामालकचुम्बित तुलक गन्ध ? 'केवल आपा खोया, खेला इस जीवन में, कह सिहरी तन में वन-बेला। 'कूऊ कू-ऊ' बोली कोयल अन्तिम सुख-स्वर, 'पी कहाँ पपीहा-प्रिया मधुर विष गई छहर, उर बढ़ा आयु पल्लव-पल्लव को हिला हरित बह गई वायु, लहरों में कम्प और लेकर उत्सुक सरिता तेरी, देखतीं तमश्चरिता छवि बेला की नभ की तारा' निरुपमिता, शत-नयन-ष्टि विस्मय में भर कर रही विविध-आलोक-सृष्टि ।

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