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अनामिका M ' बोला मैं-'बेला, नहीं ध्यान लोगों का जहाँ, खिली हो बनकर वन्य गान ! जब ताप प्रखर, लघु प्याले में अतल की सुशीतलता ज्यों भर तुम करा रही हो यह सुगन्ध की सुरा पान ! लाज से नम्र हो उठा, चला मैं और पास सहसा बह चली सान्ध्य बेला की सुवातास, झुक झुक, तन तन, फिर झूम झूम हॅस हॅस, मकोर, चिरपरिचित चितवन डाल, सहज मुखड़ा मरोर, भर मुहुर्मुहुर्, तन-गन्ध विमल बोली बेला- मैं देती हूँ सर्वस्व, छुओ मत अवहेला की अपनी स्थिति की जो तुमने, अपवित्र स्पर्श हो गया तुम्हारा, रुको, दूर से करो दर्श ।' मैं रुका वहीं, वह शिखा नवल आलोक स्निग्ध भर दिखा गई पथ जो उज्वल; मैंने स्तुति की-हे वन्य वन्हिकी तन्वि नवल! कविता में कहाँ खुले ऐले दुग्धधवल दल ?- , - - ८८: