लेने का फ़ायदा नहीं उठाती। उसकी सहायता से वे अपनी
खूराक का पता सूँघकर नहीं लगा सकतीं। अगर किसी जानवर की लाश किसी चीज़ से छिपा दी जाय या किसी चीज़ की आड़ में कर दी जाय, तो गीध, कौए और चील्ह वगैरह मांस-भक्षी चिड़ियाँ उसे नहीं ढूँढ़ सकतीं। सूँघकर वे उसका पता नहीं लगा सकतीं। डॉक्टर ग्यूलेमार्ड ने इस बात को परीक्षा से सिद्ध किया है। बहुत मौकों पर ऐसा हुआ है कि शिकार किए हुए जानवर को वह घर नहीं ले जा सके। भारी होने के सबब से उसे वह अकेले नहीं उठा सके। इस हालत में उन्होंने उस जानवर का पेट फाड़कर उसकी आँतें वग़ेरह फेक दी हैं, और लाश को वहीं, पास के किसी गढ़े में, छिपा दिया है। आदमियों को साथ लेकर लाश उठा ले जाने के लिये जब वह लौटे हैं, तब उन्होंने देखा है कि सैकड़ों मांसखोर चिड़ियाँ आलायश वगैरह के पास बैठी हैं। पर वहाँ जरा दूर पर, गड़े के भीतर छिपाई हुई लाश के पास वे नहीं गई। उसका कुछ भी पता उनको नहीं लगा। यदि उनमें घ्राण-शक्ति होती, तो सूँघकर वे ज़रूर उसे ढूँढ़ निकालतीं।
अलेगजेंडर हिल साहब ने अनाज खानेवाली चिड़ियों की घ्राण-शक्ति को परीक्षा की है, और उसका नतीजा उन्होंने प्रकाशित किया है। उन्होंने अनाज की एक छोटी-सी ढेरी लगाकर उसके भीतर रोटी के टुकड़े रख दिए। इन टुकड़ों को उन्होंने पहले ही से हींग, कपूर, लेवेंडर इत्यादि उग्र गंधवाली