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अद्भुत आलाप

आत्मतत्त्व-विद्या के जाननेवालों का यह मत है कि जानवरों में किसी प्रकार की मानसिक शक्ति नहीं है। विशेष प्रकार की स्थिति आने से वे विशेष प्रकार के काम करते हैं। अर्थात् जैसी स्थिति होती है--जैसा मौक़ा होता है--उसी के अनुसार जानवर काम करते हैं। यह नहीं कि जैसे आदमी सब काम समझ बूझकर करते हैं, वैसे वे भी करते हों। जब कोई विशेष स्थिति प्राप्त होती है, तब उसके अनुसार पशुओं की ज्ञानेंद्रियों पर कुछ चिह्न-से प्रकट हो जाते हैं। उन चिह्नों के पैदा होते ही उनकी इच्छा काम करने को चाहती है, और जैसे चिह्न होते हैं, वैसे ही काम वे करने लगते हैं। पशुओं को मानसिक भावना या चिंतना नहीं करनी पड़ती; वे इस तरह की भावनाएँ कर ही नहीं सकते। जब कोई आदमी किसी पर आघात करना चाहता है, किसी को मारना चाहता है, तब वह उससे फौरन ही अपना बचाव करता है अर्थात्ज्यों ही वह आघात होने के लक्षण देखता है, त्यों ही, उसी क्षण, वह पीछे हट जाता है, या और किसी तरह से अपना बचाव करता है। उस समय उसे किसी तरह का सोच-विचार नहीं करना पड़ता। जानवर इसी तरह बिना किसी चिंतना, भावना या विचार के काम करते हैं। उनके सारे काम प्रवृत्ति या अभ्यास की प्रेरणा से होते हैं। हम लोग अपने उदाहरण से जानवरों की शक्तियों का अंदाजा करते हैं। पर यह बात ठीक नहीं। जानवरों में मानसिक व्यापार के कोई चिह्न नहीं