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अद्भुत आलाप


न कर जाते। जहाँ पर जो जन्म से रहता है. वह बिना किसी प्रबल कारण के उस स्थान को नहीं छोड़ता। मौंटपीरी के ज्वाला उगलने के लक्षण इन जीवों को चाहे किसी स्वाभाविक रीति पर विदित हो गए हों, चाहे उनकी किसी ज्ञानेंद्रिय के योग से विदित हो गए हों, चाहे साधारण इंदियों के अतिरिक्त उनके और कोई इंद्रिय हो, जिसके द्वारा विदित हो गए हों, परंतु विदित अवश्य हो गए थे। भावी बातों को जान लेना अंतर्ज्ञान के बिना संभव नहीं। अतएव यह सिद्धांत निकलता है कि ईश्वर ने पशुओं को, अपनी रक्षा करने-भर के लिये, यह अंतर्ज्ञानज्ञा अवश्य दिया है। यदि इस प्रकार का अंतर्ज्ञान किसी स्वाभाविक रीति पर, अथवा किसी इंद्रिय द्वारा हो सकता हो, और उसे मनुष्य साध्य कर सके, तो लोक का कितना कल्याण हो। नदियों के सहसा बढ़ने, भूकंप होने और ज्वाला-गर्भ पर्वतों से आग, पत्थर इत्यादि के निकलने से जो अनंत मनुष्यों की बलि होती है, वह न हो। भावी उत्पात के लक्षण देख पड़ते ही मनुष्य, अन्यत्र जाकर, अपनी रक्षा सहज ही कर सके।

कर्वी और स्वैंस इत्यादि पंडितों ने पशु-पक्षियों के जीवन-शास्त्र-संबंधी अनेक ग्रंथ लिखे हैं, और उनमें इन प्राणियों के ज्ञान, इनकी बुद्धि, इनकी भाषा, इनके स्वभाव और इनके आचरण इत्यादि का उन्होंने बहुत ही मनोरंजक वर्णन किया है। सर जान लबक-नामक एक शास्त्रज्ञ विद्वान, इस समय भी, पशु-पक्षी, कीट-पतंग इत्यादि जीवों का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।