ही चिड़ियाँ सशंक होकर इधर-उधर भागने लगती हैं। जंगल में शेर के कोसों दूर होने पर भी उस ओर पशु नहीं जाते। विद्वानों ने परीक्षा करके देखा है कि ऐसे अवसर पर जीवों को
घ्राण-शक्ति काम नहीं देती। एकाएक, दो-दो मील पर स्थित वस्तु का ज्ञान घ्राण द्वारा होना असंभव है। परंतु पशुओं को हिंस्र जीवों के होने का ज्ञान बहुत दूर से हो जाता है। ललितपुर से होती हुई जो सड़क झाँसी को आई है, उस पर कई बार इक्केवालों के घोड़े शेर के शिकार हो गए हैं। जो इक्केवाले जीते बचे, उन्होंने बतलाया है कि जहाँ पर शेर था, उसके एक मील इधर ही से घोड़े ने आगे बढ़ना अस्वीकार किया। परंतु हंटरों की मार ने, बड़ी कठिनाई से, उसे किसी प्रकार आगे बढ़ाया, और दो-ही-चार मिनट में शेर ने आकर घोड़े पर आक्रमण किया। इससे क्या सिद्ध होता है? इससे यही सिद्ध होता है कि मनुष्येतर जीवों को ईश्वर ने एक प्रकार का अंतर्ज्ञान दिया है अथवा उनको कोई ऐसी इंद्रिय दी है, जिससे भावी विपत्ति की उन्हें पहले ही से सूचना हो जाती है, और वे अपने प्राण बचाने का उपाय करने लगते हैं। परमात्मन्! तेरी दयालुता की सीमा नहीं! हमारे देश के ज्योतिष-
ग्रंथों में जहाँ उत्पातों का वर्णन है, वहाँ कहीं-कहीं लिखा है कि
यदि कुत्ते ऐसा शब्द करने लग जायँ, अथवा उलूक यों चिल्लाने
लगें, तो अमुक-अमुक उत्पात होने की सूचना समझनी चाहिए।
आश्चर्य नहीं कि प्राचीन ऋषियों ने सूक्ष्म परीक्षा द्वारा पशु-
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आद्भुत आलाप