योरप और अमेरिका के गवेषक विद्वानों ने पशु-पक्षियों के संबंध में बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया है। किसी ने मछलियों
के विषय में, किसी ने पक्षियों के विषय में और किसी ने जंगली जीवों के विषय में ज्ञान-संपादन करने में अपना सारा आयुष्य व्यतीत कर डाला है; यहाँ तक कि अत्यंत छोटे प्राणी चिउँटी पर भी किसी-किसी ने बड़े बड़े ग्रंथ लिखकर अनेक अद्भुत अद्भुत बातें प्रकट की हैं। चिउँटियाँ घर बनाती है, और वर्षा आने के पहले ही, तीन-चार महीने के लिये, चारा संचित कर रखती हैं। यह हम लोग प्रत्यक्ष देखते हैं। परंतु शोधक विद्वानों ने देखा है कि चिउँटियों में भी धनी और निर्धन होते हैं; दास और दासियाँ होती हैं; गाय और भैंसें होती हैं; और विरुद्ध दलों में कभी-कभी घोर संग्राम तक होते हैं। ये दास-दासियाँ और गाय-भैंसें
सब चिउँटियाँ ही होती हैं। यही नहीं, वे बोलती भी हैं, और अपनी बोली में सुख-दुख, हर्ष-विमर्ष भी प्रकट करती हैं। अतएव मनुष्येतर जीवों की सज्ञानता के संबंध में संदेह न करना चाहिए। जो लोग समाचार-पत्र पढ़ते हैं, उन्होंने पढ़ा होगा कि एक अमेरिका-वासी विद्वान् इस समय बंदरों की बोली समझने का प्रयत्न कर रहे हैं। कई वर्ष तक वह आफ्रिकाके अगम्य जंगलों में गुरिल्ला, सिंपैंजी इत्यादि बंदरों के बीच रहे हैं। उनकी बोली, उनकी चेष्टा और उनके आचरण को ध्यान से देखा है; उनकी बोली को शब्द-ग्राहक यंत्र (ग्रामो-
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अद्भुत आलाप