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अद्भुत आलाप

पुस्तक में छपाया है। अमृत-बाजार-पत्रिका के पहले संपादक बाबू शिशिरकुमार घोष ने इसी वृत्तांत को अपनी अध्यात्म विद्या-संबंधिनी मासिक पुस्तक में नक़ल किया है। ब्राउन साहब ने लिखा है कि यह घटना उन्होंने अपनी आँखों देखी है। आपके लेख का मतलब अब आप ही के मुँह से सुनिए—

"हिंदोस्तान अनेक गूढ़, अज्ञात और अद्भुत बातों की जन्मभूमि है। मैं वहाँ तीस वर्ष तक रहा। जितनी अद्भुत-अद्भुत बातें मैंने वहाँ देखीं, उनमें सबसे अधिक विस्मय पैदा करनेवाली बात एक योगी की समाधि थी। यह योगी मृत्यु को प्राप्त हो गया; सात दिन तक ज़मीन में गड़ा रहा, और आठवें दिन फिर खोदकर निकाला गया, तो जी उठा। यह अलौकिक घटना हरद्वार में हुई। हरद्वार हिंदुओं का पवित्र तीर्थ है। वह हिमालय के नीचे गंगा के तट पर है।

"हरद्वार में हर बारहवें वर्ष प्रचंड मेला लगता है। लोग दूर-दूर से वहाँ जाते हैं। असंख्य यात्री वहाँ इकठ्ठे होते हैं। जैसी घटना का वर्णन मैं करने जाता हूँ, वैसी घटना कितने योरप-निवासियों ने देखी है, पर मैं नहीं कह सकता। पर इसमें संदेह नहीं कि बहुत कम ने देखी होगी। उसे देखने के लिये मुझे रूप बदलना पड़ा। साहबी पोशाक में मैं वहाँ न जाने पाता। इससे मैंने ब्राह्मण का रूप बनाया, और एक सभ्य हिंदोस्तानी बन गया। इस काम में मुझे एक हिंदोस्तानी मित्र ने बड़ी मदद दी। वह भी ब्राह्मण था और योग-विद्या में प्रवीण भी था।