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अद्भुत आलाप


बाद उसकी स्त्री उसके आरोग्य होने से निराश होकर चिल्लाकर रो उठी। बस, उसी रात को उसके सिर में दर्द हुआ, और वह सो गया। सबेरे वह पूर्ववत् हो गया। उसे उस बालक का स्मरण बिलकुल जाता रहा। उस बालक ने तीन महीने में हाना की अपेक्षा पढ़ना-लिखना कुछ कम सीखा।

सैलो-नामक कुमारी का उदाहरण

बोस्टन के डॉक्टर नार्टन प्रिंस लिखते हैं कि एक सुशिक्षिता और कम बोलनेवाली कुमारी स्त्री पर उन्होंने प्राण-परिवर्तन की क्रिया का प्रयोग किया। परिवर्तित दशा में उसने अपनी आँखें मली, और चाहा कि वे खुल जायँ। आँखें खुल गईं, और वे एक दूसरे ही व्यक्ति के अधीन बोध हुई। वह व्यक्ति अपना नाम सैली बताने लगी। यह नई व्यक्ति बड़ी नटखट और चिबिल्ली थी। पुस्तकों से यह घृणा प्रकट करती थी। पर प्रयुक्त स्त्री धर्मात्मा और सच्चरित्र था। पहले सैली कुछ ही मिनट ठहरती थी, पर पीछे से वह कई दिनों तक ठहरने लगी। सैली प्रयुक्त स्त्री के हृदय के भाव सब जानती थी। उसकी चिट्ठियों के आशय लिखकर वह रख जाती, और उसके रक्खे हुए टिकट चुरा लेती थी। कभी-कभी उसकी जेब में वह मकड़ी का जाला या साँप को केंचुली रख देती थी। सैली न केवल उसके भावों को ही जान लेती थी, किंतु उसके भावों पर अधिकार भी रखती थी, और उसके साथ बुरी-बुरी दिल्लगी करके उसे क्लेश पहुँचाया करती थी।