पर बाद में वह छ सप्ताह के ज्ञानवाला-मात्र शेष रह गया।
डॉक्टरों ने तरह-तरह की दवाइयों का प्रयोग करना आरंभ किया।
एक बार उन्होंने थोड़ी-सी भाँग पिला दी। रात-भर सोने के
अनंतर पहला हाना फिर जागा। उसको ठहराने की अनेक चेष्टाएँ
हुईं। कुछ काल तक वह सोया। जब बह जागा, तब दूसरा हाना
हो गया। उसे लोग नाट्यशाला में ले गए, और शराब पिलाई।
फिर पहला हाना जागा। कुछ काल तक वह रहा। एक बार उसे गाड़ी पर चढ़ाकर लोग गिरजाघर ले जाते थे कि वह गाड़ी ही पर कुछ सो-सा गया, और दूसरा हाना होकर उठा। यों ही कभी पहला, कभी दूसरा हाना प्रकट होता रहा। अंत में उसका जी घबरा उठा। उसे उसका जीवन बोझ मालूम होने लगा। कभी कुछ, कभी कुछ होते रहने से हाना व्याकुल हुए। वह यह भी स्थिर न कर सके कि वह पहले या दूसरे हाना होकर रहें, क्योंकि दो में से एक तो होना ही पड़ेगा। पर उन्हें इससे उतना क्लेश न होता था, जितना कि एक दशा में दूसरी-दूसरी दशा का स्मरण करने से होता था। वह चाहते थे कि दूसरी का स्मरण न हो, पर होता ज़रूर था।
अंतिम परिणाम
एक कारण कठिनाई का और था कि पहला हाना जिन लोगों को जानता था, दूसरा उन्हें पहचानता भी न था। दूसरे ने जिनसे
प्रतिज्ञा की थी पहला उनके नाम से भी वाक़िफ़ था। वे दोनो मानो किसी व्यवसाय में साझी के समान थे। कुछ काल