पृष्ठ:अद्भुत आलाप.djvu/६५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६७
परलोक से प्राप्त हुए पत्र

मृत्यु से लोग घबराते क्यों हैं? वह एक स्थिति-परिवर्तन-मात्र है-एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना-मात्र है। जिसको लोग मृत्यु कहते हैं, उसके बाद अब भी मैं वही मनुष्य हूँ, जैसा पहले था। हाँ, मेरा पार्थिव अंश वहीं पृथ्वी पर रह गया है, लेकिन जिसके कारण उस अंश का संयोग मुझसे हुआ था, वह बना हुआ है। मृत्यु का आना तक मुझे नहीं मालूम हुआ। मैं मानो सो गया, और जब जागा, तब मैंने अपने को अपने अनेक मित्रों के पास पाया, जिनको मैंने समझा था कि फिर कभी न मिलेंगे।

मैं नहीं बतला सकता कि मैं किस लोक में हूँ। लोक-विषयक किसी प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकता। मैं सिर्फ़ इतना ही कह सकता हूँ कि 'अहमस्मि' (मैं हूँ )।

यहाँ समय का कोई हिसाब नहीं। कब सूर्य उदय होता है, कब अस्त; कब रात होती है, कब दिन; इन बातों की ख़बर यहाँ किसी को नहीं। जहाँ तक मैंने देखा, सूर्य यहाँ नहीं। उसकी यहाँ जरूरत भी नहीं।

बहुधा देखा जाता है कि जो प्राणी जिस कुटुंब से संबंध रखता है, उसी में उसका पुनर्जन्म होता है। पर मैं यह नहीं कह सकता कि कितने दिन बाद पुनर्जन्म होता है। यहाँ पर कितनी ही अवस्थाएँ मुझसे बहुत अधिक उन्नत हैं। उन तक मैं नहीं पहुँच सकता। कितनी ही मुझसे भी गिरी हुई अवस्थाएँ हैं। उनका बयान सुनकर मैं काँप उठता हूँ। आत्म-लोक पार्थिव-