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परिचित्त-विज्ञान-विद्या


ये लोग पास-ही-पास इस विषय की परीक्षाओं की जाँच करने देते हैं, बहुत दूर जाकर नहीं। अर्थात् एक दूसरे से दो चार मील दूर जाकर ये अपनी करामात नहीं दिखलाना चाहते। ये कहते हैं कि पास-पास रहकर ही हम इस तरह के करिश्मे दिखलाकर रुपया पैदा करते हैं, दूर नहीं जाना चाहते। संभव है, दूर जाने से हम लोग अपनी इस अलौकिक शक्ति को खो दें। ऐसा होने से हमारा बड़ा नुक़सान होगा। यदि हमारी जीविका का और कोई ज़रिया होता, तो हम ऐसा भी करते। पर इस समय हमारी अवस्था जैसी है, उसके खयाल से हमें डर लगता है कि कहीं ऐसा न हो, जो हम परीक्षा के झगड़े में पड़कर इस परिचित्त-विज्ञान की शक्ति को खो बैठे।

परंतु परिचित्त-विज्ञान-विद्या झूठी नहीं, सच है। उसके बल से मनुष्य हज़ारों कोस दूर बैठकर भी औरों के मन का हाल जान सकता है। सौभाग्य से मुझे इसका भी प्रमाण मिला है। अमेरिका के जार्जिया-प्रांत में अटलांटा-नामक एक शहर है। उसमें ऐंड मेकडानल नाम के एक साहब रहते हैं। उन्होंने, अभी कुछ ही दिन हुए, मेर पास प्रकाशित होने के लिये एक लेख भेजा है। उसमें उन्होंने लिखा है कि वह कुमारी मेबल रे नाम की एक स्त्री से, १२०० मील की दूरी से, बातचीत कर सकते हैं। पहले उनको इतनी दूर से बातचीत करने का अभ्यास न था। यह अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ा है। मुझे