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निवेदन
(चतुर्थ आवृत्ति पर)

पूज्यपाद द्विवेदीजी की इस आदर्श पुस्तक का यू॰ पी॰ के स्कूलों के हेडमास्टरों तथा हिंदी-अध्यापकों ने समुचित आदर करके हमको इसका नवीन संस्करण एक ही वर्ष में निकालने का अवसर दिया है।

विद्यार्थियों में इसका और अधिक प्रचार करने के विचार से हमने इसका मूल्य भी १) से ।।।) कर दिया है। आशा है, कोई भी स्कूल इस वर्ष इसकी पढ़ाई से वंचित न रह जायगा।

कवि-कुटीर दुलारेलाल
१ । ६ । ३५