एक दफ़े रूस के ज़ार ने एक रूसी शब्द की भावना की। कंबरलैंड साहब रूसी भाषा बिलकुल ही नहीं जानते, परंतु उस शब्द को उन्होंने तद्वत् लिख दिया।
कंबरलैंड साहब ने ऐसे ही अनेक राजा-महाराजा और धनी-मानी आदमियों के मन की बातें बतलाकर, लिखकर, चित्र द्वारा खींचकर अपनी अद्भुत अंतर्ज्ञान-विद्या की सत्यता को सिद्ध कर दिखाया है।
मूक प्रश्नों का उत्तर देने और मन की बात बतलाने में केरल-प्रांत के ज्योतिषियों का इस देश में बड़ा नाम रहा है। सुनते हैं, अब भी वहाँ इस विद्या के अच्छे-अच्छे पंडित पाए जाते हैं। और भी कहीं-कहीं ऐसे-ऐसे अंतर्ज्ञानियों का नाम सुन पड़ता है। शाही ज़माने में लखनऊ में भी इस तरह के आदमी थे, जो दूसरे के मन का हाल बतला देते थे। कोई २० वर्ष हुए, हमारे मित्र बाबू सीताराम को लखनऊ में ऐसा ही एक वृद्ध मनुष्य मिला था। वह इनसे बिलकुल अपरिचित था। परंतु वह इनका पुराना इतिहास सब बतला गया, और इनके मन की बातों को उसने इस तरह सही सही कहा, मानो वह इनके हृदय के भीतर घुसकर उनको मालूम कर आया हो। लोगों का विश्वास अब इस विद्या से उठता जाता है, क्योंकि इसके अंदर धूर्तता अक्सर छिपी हुई मिलती है।
एप्रिल, १९०५