पूरी हो गई। देखा गया, तो मालूम हुआ कि वह चित्र सड़कों पर गड़े हुए एक लालटेन का था। उसी की भावना उस मनुष्य ने की थी; परंतु उसे सोचते समय उसके ब्रैकेट का ख़याल बाल उसे नहीं रहा था। इससे साहब ने जो तसवीर बनाई, उसमें भी ब्रैकेट न था। उनकी इस अद्भुत शक्ति को देखकर सब लोग हैरत में आ गए। इनके सिवा और भी कई प्रमाण उन्होंने अपने अंतर्ज्ञान के दिए।
योरप के धन-कुबेर राथस् चाइल्ड के यहाँ एक दिन जलसा था। हमारे स्वर्गीय राजेश्वर एडवर्ड सप्तम भी उसमें शरीक थे। कंबरलैंड साहब भी वहाँ उस समय हाज़िर थे। राजेश्वर ने उनके अंतर्ज्ञान की परीक्षा करनी चाही! उन्होंने लंका में मारे गए एक वेपूँछ के हाथी की भावना की। कंबरलैंड ने तत्काल ही उसका चित्र खींच दिया, पर पूँछ उन्होंने नहीं बनाई। पूछने पर मालूम हुआ कि राजेश्वर ने पूछ की भावना ही नहीं की थी, क्योंकि वह उस हाथी के थी ही नहीं।
हमारे राजेश्वर की महारानी अलेगज़ंडरा एक दफ़े डेनमार्क में अपने पिता के यहाँ थीं। वहाँ भी किसी मौक़े पर कंबरलैंड साहब पहुँचे। महारानी ने महल के किसी दूसरे हिस्से में रक्खे हुए एक फ़ोटो की भावना की, और यह चाहा कि कंबरलैंड साहब उसे वहाँ से उठा लाएँ। साहब ने कहा बहुत अच्छा। वह ग्रीस के शाहज़ादे जार्ज के साथ फौरन वहाँ गए, और उस फ़ोटो को लाकर उन्होंने उसे महारानी के हाथ में दे दिया। इस अलोकिक शक्ति को देखकर सब लोग स्तंभित-से हो गए।