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अंतःसाक्षित्व-विद्या


बादशाहों और रानियों आदि के सामने जो परीक्षाएँ दी हैं, जो कौतुक दिखाए हैं, उनका संक्षिप्त वर्णन आजकल 'पियर्सस मैगेज़ीन' में छप रहा है।

एक दिन कंबरलैंड साहफ 'पियर्सस मैगेज़ीन' के दफ़्तर में पधारे। वहाँ आपकी परीक्षा हुई। एक आदमी से कहा गया कि वह कल्पना करे कि उसके किली अंग में दर्द हो रहा है। उसने वैसा ही किया। साहब की आँखें रूमाल से बाँध दी गई। उन्होंने उस श्रादमी का हाथ पकड़ा। पकड़ते ही उसके शरीर में वैधुतिक धारा-सी बही। उनका हाथ पहले कुछ इधर-उधर घूमा। फिर उन्होंने फ़ौरन् ही उस आदमी के बाएँ कान का निचला हिस्सा पकड़ लिया। बस, वहीं उस आदमी ने दर्द होने की मन में भावना की थी। इस बात को देखकर देखनेवाले अचरज में आ गए। वे चकित हो उठे। वहाँ पर, उस समय, एक और आदमी बैठा था। उससे कहा गया कि तुम भी किसी चीज़ की भावना करो। उसने एक चीज़ की तसवीर की भावना करनी चाही। सफ़ेद काग़ज़ का एक मोटा तख्ता दीवार पर लगा दिया गया। कंबरलैंड साहब ने उस आदमी का हाथ अपनी कलाई पर रक्खा, और उससे कहा कि तुम काग़ज़ की तरफ देखो, और भावना करो कि तुम उस पर अपनी भावित वस्तु की तसवीर खींच रहे हो। उसने वैसा ही किया। वह उधर उसकी भावना करने लगा, यह इधर हाथ में पेंसिल लेकर उस भावना का चित्र उतारने लगे। एक मिनट में यह परीक्षा